वास्तु पुरुष: उत्पत्ति, महत्व और वास्तु शास्त्र की वैज्ञानिकता


वास्तु शास्त्र का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। चाहे घर हो, दुकान हो या कार्यालय, हर जगह वास्तु के सिद्धांतों का पालन

किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तु पुरुष कौन हैं, जिन्हें वास्तु का देवता माना जाता है? आइए, उनकी पूरी

कथा जानें।

वास्तु शास्त्र का महत्व

वर्तमान समय में वास्तु शास्त्र का व्यापक प्रचलन है। लोग अपने घर, दुकान या कार्यालय का निर्माण वास्तु के अनुसार ही करना

पसंद करते हैं। किसी भी नए भवन में वास्तु पूजन क्यों कराया जाता है और वास्तु पुरुष की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, इस बारे

में प्राचीन ग्रंथों में कई उल्लेख मिलते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि हर व्यक्ति को वास्तु पुरुष की उत्पत्ति और वास्तु शास्त्र के बारे में

पूर्ण जानकारी हो, जिससे भवनों का निर्माण सही ढंग से किया जा सके।

वास्तु शास्त्र का अर्थ और उद्भव

वास्तव में, 'वास्तु' शब्द संस्कृत के 'वास' से बना है, जिसका अर्थ है निवास करना। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने प्रकृति के पंचभूत,

ग्रहों और उनके गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को समझकर लोगों के जीवन में खुशहाली,

शांति और समृद्धि लाने के उद्देश्य से वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों की स्थापना की थी। ग्यारहवीं शताब्दी में रचित ग्रंथ 'समरांगण

सूत्रधार' में वास्तु शास्त्र के महत्व का वर्णन किया गया है।

वास्तु शास्त्र के सिद्धांत

ग्रंथ के अनुसार, वास्तु शास्त्र के सिद्धांतों के अलावा कोई अन्य सिद्धांत नहीं है जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई

भवन सही ढंग से निर्मित है या नहीं। वास्तु शास्त्र के नियम बहुत ही सूक्ष्म अध्ययन और अनुभव के आधार पर बनाए गए हैं,

और इसमें पंच मूलभूत तत्वों का समावेश किया गया है।

वास्तु पुरुष की उत्पत्ति

वृहद्संहिता में वास्तु विद्या को ब्रह्मा से उत्पन्न बताया गया है। मत्स्य पुराण में वर्णित कथा के अनुसार, भगवान शिव ने

अंधकासुर नामक दैत्य को युद्ध में मार डाला। इस श्रम से भगवान के ललाट से पसीना पृथ्वी पर गिरा, जिससे एक भीषण और

विकराल मुख वाला जीव उत्पन्न हुआ, जिसे 'वास्तु पुरुष' कहा गया।

देवताओं का वास्तु पुरुष पर क्रोध

वह जीव पृथ्वी और आकाश को आतंकित करने लगा। उसके विशाल आकार से आतंकित होकर सभी देवताओं ने क्रोधित

होकर उसे भूमि में दबा दिया और स्वयं उसके ऊपर खड़े हो गए। ब्रह्मा जी ने वास्तु पुरुष को वरदान दिया कि जो कोई भी

पृथ्वी पर भवन आदि बनाएगा, वह उसकी पूजा करेगा। ऐसा न करने वाला व्यक्ति अनेक कठिनाइयों का सामना करेगा।



वास्तु पुरुष की संरचना

किसी भी भूखंड में वास्तु पुरुष की कल्पना एक औंधे मुंह लेटे हुए व्यक्ति के रूप में की गई है। उसके अंगों में सिर ईशान कोण

में, कंधे उत्तर और पूर्व दिशा में, कोहनियां वायव्य और आग्नेय कोण में, और दोनों पैर मुड़े हुए होते हैं। वास्तु पुरुष का पेट

भूखंड के मध्य स्थान में पड़ता है, जिसे 'ब्रह्म स्थान' कहते हैं।

वैज्ञानिक आधार

वास्तु की यह कथा पौराणिक है, लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि वास्तु शास्त्र का संबंध ग्रहों और उनके प्रभाव से है और

इसका एक वैज्ञानिक आधार है। प्राचीन ऋषियों द्वारा विकसित किए गए ये सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं और आधुनिक वास्तु

विशेषज्ञों द्वारा व्यापक रूप से अपनाए जाते हैं।

वास्तु शास्त्र का उद्देश्य मनुष्य के जीवन में संतुलन और समृद्धि लाना है, और इसे प्राप्त करने के लिए यह प्रकृति के नियमों

के साथ सामंजस्य स्थापित करता है। यही कारण है कि वास्तु शास्त्र आज भी उतना ही महत्वपूर्ण और प्रासंगिक है जितना

प्राचीन समय में था।



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